नवरात्रि के दूसरे दिन माता के दूसरे स्वरूप ब्रहमचारिणी की पूजा-आराधना की जाती है। ब्रहाचारिणी दो शब्दो से मिलकर बना है, ब्रह्रा जिसका का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का मतलब आचरण करने वाली। नवरात्रि में माता ब्रहमचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति में तप, त्याग और संयम में वृद्धि होती है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में देवी ब्रह्राचारिणी का दूसरा स्वरूप है।
माता ब्रह्राचारिणी हमेशा कठोर तपस्या में लीन रहती है। माता के हाथों में माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रुप में पाने के लिए हजार सालो तक कठिन तप और उपवास किया था। शास्त्रो के अनुसार माता ने कठिन से कठिन परिस्थितियों में भगवान भोलेनाथ की तपस्या में लीन रही।
हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। कई हजार वर्षों तक बिना पानी के और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। घोर तपस्या के बाद भगवान शिव के पति रूप में प्राप्त होने का वरदान मिला। इससे बाद मां अपने पिता के घर लौट आई। इस कारण से मां का यह रूप तपस्या और आराधना का प्रतीक माना जाता है।
जो भक्तगण माता ब्रह्राचारिणी देवी की पूजा करता है उसे सर्वत्र और विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।
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